
रंगों की तरंग में डूबा महिला भूमिहार समाज का होली मिलन समारोह
वाराणसी। महिला भूमिहार समाज द्वारा आयोजित होली मिलन समारोह इस वर्ष भी हर्षोल्लास और उमंग के साथ होटल मधुबन पैलेस, ककरमत्ता में संपन्न हुआ। इस आयोजन में महिलाओं ने जमकर होली खेली, अबीर-गुलाल उड़ाए और नृत्य कर आनंद मनाया। ब्रज की होली और काशी की संस्कृति के अद्भुत संगम ने समारोह को और भी रंगीन बना दिया।
राधा-कृष्ण के रंग में रंगी महिलाएं
समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ, जिसमें अपर सिविल जज जूनियर डिवीजन ईशा राय, म.गां. काशी विद्यापीठ की कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी की पत्नी श्रीमती देवसुता तिवारी, रजिस्ट्रार डॉ. सुनीता पांडे, डॉ. सरोज पांडे, रीता सिन्हा, प्रो. उषा किरण राय, रीना राय, कुसुम राय एवं राजकिरण राय सहित कई विशिष्ट अतिथियों ने हिस्सा लिया।
गणेश वंदना के साथ शुरू हुए इस आयोजन में महिलाओं ने ब्रज की होली की थीम को साकार किया। राधा-कृष्ण के परिधानों में सजी महिलाओं ने रंगों की बौछार और फूलों की वर्षा के साथ होली का आनंद उठाया। गुलाल उड़ाते हुए सभी ने पारंपरिक होली गीतों पर नृत्य किया, जिससे पूरा माहौल होली के उल्लास में डूब गया।
संस्कृति और परंपरा का अद्भुत संगम
महिला भूमिहार समाज की संस्थापिका डॉ. राजलक्ष्मी राय ने कहा कि “होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि आपसी प्रेम, भाईचारे और सद्भाव का प्रतीक भी है। जब ब्रज की होली और काशी की बोली एक साथ आती हैं, तो हर ओर खुशियों के रंग बिखर जाते हैं।”
समारोह में आए अतिथियों का स्वागत छाया, खुशबू, सविता, माया सोनी और अनीता ने माल्यार्पण और अंगवस्त्र भेंट कर किया। इस अवसर पर महिलाओं ने पारंपरिक गीतों और नृत्य के माध्यम से उत्सव को जीवंत कर दिया।
समारोह की भव्यता में महिलाओं का योगदान
इस भव्य आयोजन को सफल बनाने में सविता, खुशबू, छाया, स्वप्निल, माया, अनीता, सोनी आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा। वहीं, पूनम सिंह, मंजुला चौधरी, वंदना सिंह, किरण सिंह, सरिता, प्रतिमा, सोनी राय, बबिता, चंद्रकला, डॉ. विजयता, प्राची राय, नीलिमा राय, आशा राय, सीमा, सुमन, अनिता, नीलू, रिमझिम, पायल, पूजा, संध्या, अंजू समेत अनेक महिलाओं की उपस्थिति ने आयोजन को यादगार बना दिया।
कार्यक्रम का सफल संचालन सविता सिंह एवं खुशबू ने किया, जबकि डॉ. राजलक्ष्मी राय एवं पूनम सिंह ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।
यह होली मिलन समारोह सिर्फ रंगों का उत्सव नहीं था, बल्कि महिला शक्ति और परंपराओं के समागम का प्रतीक भी बना, जहां हर रंग खुशियों की एक नई कहानी कह रहा था।