मॉरीशस में हिंदी की व्यापकता को बढ़ाने के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन करेगा विस्तार- डॉ सचिन।

मॉरीशस में हिंदी की व्यापकता को बढ़ाने के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन करेगा विस्तार- डॉ सचिन।

 

(रिपोर्ट: विवेक राय)

वाराणसी। मॉरीशस में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयागराज के प्रधानमंत्री श्री कुंतक मिश्र जी, प्रोफेसर डॉ एमपी तिवारी जी सदस्य कार्यकारिणी, डॉ सचिन मिश्र सनातनी जी और हिंदी प्रचारिणी सभा मॉरिशस की मुख्य अध्यक्षा डॉ रोहिणी रामरूप जी सहित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के पावन प्रांगड़ में दो देशों के बीच हिंदी भाषा के उत्थान और विकास पर सकारात्मक चर्चा हुई जिसमें सम्मेलन द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रतिवर्ष की प्रथमा, मध्यमा और उत्तमा की परीक्षाओं से उत्तीर्ण होने वाले छात्र और छात्राओं को विशेष वरीयता मिलती रही है । उन्हें इस हिंदी के पाठ्यक्रम से यहां मॉरिशस में हिंदी विभाग में कार्य करने का अच्छा अवसर मिलता रहा है और आज यहां पर बड़े बड़े शिक्षण संस्थानों में कई पदों को सुशोभित कर रहे है जिसमें हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ट सेवा भी प्रदान कर रहे है। परंतु इसके बावजूद यहां पर क्रियोल जिसमें फ्रेंच, चाइनीज और भोजपुरी के मिश्रण वाली भाषा का प्रचलन अत्यधिक हो रहा है जो कि बहुत चिंताजनक है। हमारे इस चर्चा में महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के सभागार में उपस्थित रहे डॉ विद्योतमा कुंजल-निदेशक महात्मा गाँधी इंस्टीट्यूट, श्रीमती उमा कोलेसर-रजिस्ट्रार, महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट, श्री गुलशन सुखलाल-हेड स्कूल इंडियन स्टडीज, डॉ राज शेखर-आईसीसीआर चेयर, डॉ के के झा-हिंदी विभागाध्यक्ष और डॉ तनुजा बिहारी, लेक्चरर हिंदी आदि रही है।

 

तत्कालीन ब्रिटिश की अंग्रेजी सरकार की हुकूमत से भारत से भेजे गए लगभग साढ़े चार लाख गिरमिटिया मजदूर सन 1834 लाना प्रारंभ हुआ था जिसका साक्ष्य आज भी यहां महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के संग्रहालय में सजो कर रखा गया है । मॉरीशस में अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए अंग्रेज बड़े पैमाने पर भारतीय मजदूरों को ले आए थे, जिन्हें गिरमिटिया कहा जाता था। गिरमिटिया लोगों की मेहनत ने न केवल मॉरीशस की सूरत और सीरत बदल दी, बल्कि भारत के साथ भावानात्मक संबंध की नींव भी डाली।

दो देशों के बीच का रिश्ता केवल कूटनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंधों के नियमों के दायरे में नहीं है, बल्कि वो एक ऐसा रिश्ता है जिसमें अपनी संस्कृति को संजोए अपनापन है, अनुराग है और भावनाओं से भरा है।

इस इंस्टीट्यूट की खास बात ये है कि यहां का रिश्ता तब और गहराया जब मॉरीशस के साथ भारत के संबंधों के नए दौर की शुरुआत सन 1970 के दशक में हुई, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मॉरीशस इस इंस्टीट्यूट की स्थापना हेतु आई थी। इंदिरा गांधी खासतौर पर अप्रवासी घाट देखने गईं थीं, जहां भारत के बंधुआ मजदूर उतारे जाते थे। फिर धीरे-धीरे भारत के साथ मॉरीशस की नजदीकियां बढ़ने लगी। मुक्त अर्थव्यवस्था और संचार साधनों ने मॉरीशस को भारत के और करीब ला दिया। आज दोनों देशों के बीच हिंदी भाषा और साहित्य सहित भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से बेहतर संबंध स्थापित हो रहे हैं।

दो देशों को और करीब लाने का मंथन यहां के हिंदी प्रेमी और भारत के हिंदी प्रेमी के संयुक्त प्रयासों से कई विचार विषय रखे गए है जिस पर हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री का प्रतिनिधि मंडल ने गंभीरता से इसे लेकर सामंजस्य स्थापित करने में पूरा प्रयास करेगा जिससे यहां पर और लोकप्रिय बनाया जा सके पाठ्यक्रम का कंटेंट उपलब्ध कराया जा सके और हिंदी की परीक्षाओं में छात्रों को अत्यधिक रूप से शामिल कर रिश्तों को मजबूत किया जा सके ऐसे प्रयासों की संभावना को लेकर हिंदी प्रचारिणी सभा, विश्व हिंदी सचिवालय सहित हिंदी साहित्य सम्मेलन सतत कटिबद्ध रहेगा। इस बात की जानकारी सम्मेलन के प्रचार मंत्री डॉ सचिन सनातनी ने साझा किया।

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