
सद्गुरु सदाफल देव आप्त वैदिक गुरुकुलम् के नव विस्तार का किया उद्घाटन
(रिपोर्ट: विरेंद्र प्रताप उपाध्याय)
चौबेपुर (वाराणसी) क्षेत्र के उमरहाँ स्थित स्वर्वेद महामंदिर में, विहंगम योग संत समाज के शताब्दी समारोह कार्यक्रम पर आयोजित 25000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ के अवसर पर देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के उमरहाँ में निर्मित स्वर्वेद महामंदिर धाम पर उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ का शनिवार को प्रातः 9:50 पर स्वर्वेद महामंदिर के प्रांगण में आगमन हुआ। और उन्होंने सद्गुरु आचार्य श्री स्वतन्त्र देव जी महाराज एवं संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज की पावन उपस्थिति में इस दिव्य एवं भव्य मंदिर का दर्शन किया। सथही तत्पश्चात संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज के निर्देशन में संचालित सद्गुरु सदाफल देव आप्त वैदिक गुरुकुलम् के नव विस्तार का उद्घाटन भी किया। साथ ही गुरुकुलम् के लगभग 300 छात्रों से मुलाकात की और आर्थिक रूप से विपन्न कुछ अनाथ बच्चों को पारितोषिक स्वरूप वस्त्र आदि प्रदान किया।
इसके पश्चात् उन्होंने इस अवसर पर आयोजित 25000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ की ओर प्रस्थान किया। मंच पर उपस्थित माननीय मुख्यमंत्री जी का सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज ने अंगवस्त्रम से सम्मानित किया। और संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज ने स्वर्वेद महामंदिर का स्मृति चिन्ह भेंट किया।
महायज्ञ में बैठे लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुये, माननीय मुख्यमंत्री जी ने भारतीयता, सनातन धर्म और देश के प्रति समर्पण की शक्ति पर जोर देते हुये कहा कि हर कार्य देश और धर्म के नाम पर होनां चाहिये। सी.एम योगी ने विहंगम योग के प्रणेता सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने 1924 में विहंगम योग संत समाज की स्थापना की और भारतीय योग व आध्यात्मिक परंपरा को जन-जन तक पहुंँचानें का कार्य किया। देश के स्वाधीनता संग्राम में आरंभिक वर्षों में स्वामीजी की जेलयात्रा को याद करते हुये, उन्होंने कहा कि जब देश बेड़ियों में जकड़ा हुआ हो तो एक सच्चे सन्त योगी बैठे नहीं रह सकते। स्वामीजी द्वारा उत्तराखण्ड कोटद्वार के समीप हिमालय शून्य शिखर आश्रम रचित स्वर्वेद महाग्रन्थ का विशेष स्थान है। उनकी परंपरा आज भी विज्ञान देव जी महाराज और आचार्य स्वतंत्र देव जी महाराज के माध्यम से आगे बढ़ रही है। माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने स्वर्वेद महामंदिर धाम में 25,000 कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ के विशाल आयोजन की सुचारु व्यवस्था की ढेरसारी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह समारोह न केवल आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है।
संत प्रवर श्री ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि योगी ही उपयोगी हैं। आज उत्तर प्रदेश माननीय मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में कानून व्यवस्था से लेकर विकास कार्यों सहित हर क्षेत्रे में निरंतर ऊँचाइयों की तरफ बढ़ता जा रहा है। आपके अन्दर इच्छा शक्ति है, पुरुषार्थ शक्ति है, संकल्प की अद्भुत शक्ति है।
उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी ने कहा- देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमन्त्री के रूप में योगी जी ने अनेक लोक-कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए कई कड़े और बड़े फैसले लिये हैं। जिससे समाज के सभी समुदायों और वर्गों में आपकी लोकप्रियता बढ़ी है। विहंगम योग संत-समाज से तो आपका एक आत्मिक नाता-सा जुड़ गया है।
यज्ञानुरागियों को संबोधित करते हुए सन्त प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने कहा कि यज्ञ भारतीय संस्कृति का प्राण है। यज्ञ श्रेष्ठतम शुभ कर्म है। यज्ञ का अर्थ है त्याग भाव। यज्ञ मैं और मेरा से ऊपर उठकर विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। जैसे अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की ओर उठती है, वैसे ही हमारा जीवन भी ऊर्ध्वगामी हो। अशुभ नष्ट होता रहे। महाराज श्री ने यह भी कहा कि यज्ञ श्रेष्ठ मनोकामनाओं की पूर्ति और पर्यावरण शुद्धि का भी साधन है।
महाराज जी ने बताया कि यज्ञ का धुँआ कोई डीजल या पेट्रोल का धुँआ नहीं है। यह आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का लाभकारी धूम्र है जिससे स्वास्थ्य लाभ एवं पर्यावरण शुद्धि दोनों का लाभ होता है। आज हो रहे ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने का यह एक सशक्त माध्यम है। यज्ञ एवं योग के सामंजस्य से ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।
भव्य एवं आकर्षक ढंग से सजी 25,000 यज्ञ वेदियों में वैदिक मन्त्रोच्चारण के बीच लाखों दम्पत्तियों ने एक साथ भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त आहुतियों को प्रदान किये। यज्ञ के पश्चात् सद्गुरु देव एवं संत प्रवर श्री के दर्शन के लिए भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। यज्ञ वेदी से निकल रहे, धूम्र से आस-पास के गाँवों का संपूर्ण वातावरण परिशुद्ध होने लगा। यज्ञ के उपरांत मानव मन की शांति व आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त नए जिज्ञासुओं को ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा आगत दी गई। जिसमें हजारों नए जिज्ञासुओं ने ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा को ग्रहणकर अपने जीवन का आध्यात्मिक मार्ग प्रसस्त किया।
कार्यक्रम के सायंकालीन सत्र में विविध संस्कृति कार्यक्रमों और आध्यात्मिक भजनों की प्रस्तुति की गयी। इसी के साथ संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज के दिव्यवाणी जय स्वर्वेद कथा की ज्ञान गंगा से निःसृत अठारहवें और उन्नीसवें ग्रन्थ का विमोचन हुआ। इसके पश्चात् संत प्रवर के श्रीमुख से जय स्वर्वेद कथा और सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज की अमृतवाणी हुई। महाराज जी ने कहा कि आज योग एक विश्व विश्रुत शब्द तो बन गया है लेकिन इसे केवल आसन और प्राणायाम की परिधि में ही आवद्ध किया जा रहा है। इसके मूल स्वरूप आत्मज्ञान व परमात्म ज्ञान की आंतरिक साधना की प्रक्रिया गौण होती जा रही है।
उन्होंने कहा कि जैसे कमल का पत्ता जल से ही उत्त्पन होता है और जल में ही रहता है पर वह जल से लिप्त नहीं होता। ऐसे ही एक विहंगम योगी संसार में रहते हुए संसार के कार्यों को करते हुए भी इससे निर्लिप्त रहता है।