
डॉ.संपूर्णानंद की शिक्षा दर्शन: एक अनुकरणीय आदर्श -पूर्व कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल।
सूर्य की भांति काशी ही नहीं साथ-साथ सम्पूर्ण भारत देश को प्रकाशित किया – का•कुलपति प्रो.रामकिशोर त्रिपाठी।
(संतोष कुमार सिंह)
वाराणसी :- डॉ.सम्पूर्णानन्द एक महान विद्वान और शिक्षाविद थे जिन्होंने संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया उनकी धारणा के अनुसार,संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है जिसमें म्यूजियम स्थापित किया गया है उनका मानना था कि सभी विश्वविद्यालयों में म्यूजियम होना चाहिए जहां अभिलेख और पाण्डुलिपियाँ रखी जा सकें | इससे हम अपने पुराने पुरातन गौरव से भविष्य में अनुसंधान कर सकेंगे | उक्त विचार आज इस प्राचीन संस्था के संस्थापक,पूर्व राज्यपाल/ पूर्व मुख्यमंत्री एवँ शिक्षाविद डॉ सम्पूर्णानन्द के 134 वें जयंती समारोह में महाराष्ट्र में स्थित महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया |
प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि डॉ. संपूर्णानंद का यह भी मानना था कि यह विश्वविद्यालय पुरातन गौरव का भविष्य के अनुसंधान के लिए बनाया गया है इसके अलावा,यह विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है जहां विदेशी भाषाओं को पढ़ाया जाता है | इससे संस्कृत के वास्तविक ज्ञान राशि को जानने और समझने का अवसर प्राप्त होता है जिससे भारतीय ज्ञान परम्परा का प्रसार सम्पूर्ण विश्व में हो रहा है | डॉ. संपूर्णानंद की अंतरराष्ट्रीय कानून में भी बहुत रुचि थी जो उनकी विद्वान और विशाल व्यक्तित्व को दर्शाता है साहित्यप्रेमी, राजनेता, पत्रकार,लेखक,अध्यापक एवं समाजसेवी डॉ सम्पूर्णानंद का जन्म काशी के एक विद्वान श्री विजयानंद के घर में 1 जनवरी 1891 को हुआ था | प्रारम्भिक शिक्षा घर पर होने के बाद उन्हें काशी के विख्यात हरिश्चंद्र स्कूल और फिर क्विंस कालेज में अध्ययन किये |
स्वस्थ मंच के रूप इस विश्वविद्यालय का निर्माण हुआ –
अध्यक्षता वेदांत विभाग के आचार्य एवं कार्यवाहक कुलपति प्रो.रामकिशोर त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय के संस्थापक पूर्व मुख्यमंत्री डॉ सम्पूर्णानंद जयंती समारोह में कहा कि अध्यापन के साथ ही स्वाध्याय पर भी ध्यान था | आप बहुआयामी व्यक्तित्व तथा साहित्य,कला,संस्कृति के क्षेत्र में समान अधिकार रखते हुये कुशल लेखक, राजनेता एवं उत्कृष्ट वक्ता थे आपके मौलिक लेखन से सभी प्रेरित होते हैं आपके प्रयास से स्वस्थ मंच के रूप में इस संस्था का उदय हुआ जहां पर प्राच्यविद्या का संरक्षण- संवर्धन होता है आज इसी प्रारूप से संस्कृत के कई विश्वविद्यालयों का निर्माण किया गया है |
डॉ• सम्पूर्णानन्द बहुत स्पष्टवादी थे जिसका उनके जीवन में पीड़ा भी सहना पड़ा | वे सूर्य की भांति काशी के साथ -साथ सम्पूर्ण देश में अपने प्रकाश से प्रकाशित किए |
जन्म जयंती को संकल्प दिवस के रूप में मनाया जा रहा है –
विशिष्ट अतिथि प्रो हरिप्रसाद अधिकारी ने कहा कि आज उनके जयंती समारोह में उनके व्यक्तित्व- कृतित्व से हम संकल्प लें कि उनके विचारों के अनुरूप अपने जीवन को ढालकर लें चलें | आज के इस जयंती समारोह को संकल्प दिवस के रूप मनाया जाए |
जयंती समारोह के प्रारम्भ में डॉ• सम्पूर्णानन्द के प्रतिमा पर माल्यार्पण –
जयंती के प्रारम्भ में कुलपति प्रो.बिहारी लाल शर्मा एवं विश्वविद्यालय परिवार के साथ परिसर में स्थापित डॉ संपूर्णानंद के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर याद किया गया |
मंगलाचरण –
वैदिक मंगलाचरण प्रो महेंद्र पाण्डेय तथा पौराणिक डॉ मधुसूदन मिश्र ने किया |
दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण –
मंच पर आसीन अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलन तथा माँ सरस्वती एवं डॉ सम्पूर्णानंद के चित्र पर माल्यार्पण किया गया |
स्वागत एवं भाषण –
विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.जितेन्द्र कुमार |
संचालन एवं संयोजक-
प्रो.रामपूजन पाण्डेय ने उनके व्यक्तित्व परिचय देते हुए कहा कि उन्होंने वेदांत, सामाजिक चेतना,समाजवाद सहित अनेकों क्षेत्रों को लेकर तथा संस्कृत में भी पुस्तक एवं श्लोक लिखी गयी इसके साथ ही बंगला,अंग्रेजी आदि भाषाओं में उनके लेखन हैं |
धन्यवाद ज्ञापित –
वेद वेदांग संकाय के प्रमुख प्रो.अमित कुमार शुक्ल ने धन्यवाद ज्ञापित किया |
उपस्थित ज़न-
प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल,प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी,प्रो.जितेन्द्र कुमार,डॉ पद्माकर मिश्र,प्रो.रमेश प्रसाद,विजय कुमार पाण्डेय,प्रो.महेंद्र पाण्डेय,प्रो.विधु द्विवेदी, प्रो.राजनाथ,प्रो.दिनेश कुमार गर्ग,प्रो.विद्या कुमारी,डॉ रविशंकर पाण्डेय,डॉ• विजय कुमार शर्मा,डॉ ज्ञानेन्द्र,डॉ• मधुसूदन मिश्र, डॉ उमापति उपाध्याय आदि उपस्थित थे ||