
श्रावण तृतीय सोमवार को ऐतिहासिक पहल, उत्तर-दक्षिण भारत के आध्यात्मिक सेतु का निर्माण
वाराणसी। सनातन परंपरा को जीवंत बनाते हुए काशी और रामेश्वरम के बीच पवित्र तीर्थ जल और रेत के आदान-प्रदान की ऐतिहासिक परंपरा की औपचारिक शुरुआत सोमवार को काशी विश्वनाथ धाम में विधिवत रूप से की गई। श्रावण मास के तृतीय सोमवार को हुए इस समारोह में त्रिवेणी संगम प्रयागराज का पवित्र जल और रेत भगवान विश्वेश्वर को अर्पित की गई।
इसके उपरांत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कर-कमलों से यह तीर्थ जल और रेत रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के प्रतिनिधियों—देवकोट्टई जमींदार परिवार न्यास के सी.आर.एम. अरुणाचलम और कोविलूर स्वामी—को विधिपूर्वक सौंपा। इस दौरान वैदिक मंत्रोच्चार और धर्माचार्यों की उपस्थिति में आयोजन को धार्मिक गरिमा प्रदान की गई।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि यह परंपरा उत्तर और दक्षिण भारत की आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है। उन्होंने इसे भारत की सांस्कृतिक चेतना को जोड़ने वाला ‘दिव्य सेतु’ बताया।
AL. AR. KATTALAI ट्रस्ट के ट्रस्टी सी.आर. अरुणाचलम ने 19 जून 2025 को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को पत्र लिखकर यह प्रस्ताव भेजा था कि त्रिवेणी संगम का जल रामनाथस्वामी मंदिर तक भेजा जाए, और वहीं से कोडी तीर्थम का जल काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक हेतु आए। इस प्रस्ताव को न्यास की कार्यपालक समिति ने 3 जुलाई को मंजूरी दे दी।
इसके तहत 27 जुलाई को प्रयागराज में वैदिक विधि से संगम जल और रेत का संग्रह किया गया। इस कार्य में डिप्टी कलेक्टर समेत मंदिर ट्रस्ट के प्रतिनिधियों के अलावा प्रयागराज प्रशासन, संत समाज और सैन्य आयुध भंडार के अधिकारी मौजूद रहे।
शास्त्रों में वर्णित इस परंपरा के अनुसार, प्रयागराज के त्रिवेणी संगम का जल रामेश्वरम में रामनाथस्वामी के अभिषेक में प्रयोग होता है, जबकि रामेश्वरम से कोडी तीर्थम का जल श्री काशी विश्वनाथ को अर्पित किया जाता है। साथ ही रामेश्वरम की रेत को प्रयाग की रेत में मिलाने की भी विशेष धार्मिक महत्ता है।
श्रावण पूर्णिमा को रामेश्वरम से भेजे गए तीर्थ जल से श्री काशी विश्वनाथ का विशेष जलाभिषेक किया जाएगा। इस अवसर पर महापौर, राज्य सरकार के मंत्री, सांसद-विधायक, प्रमुख सचिव धर्मार्थ कार्य एवं पर्यटन मुकेश मेश्राम, मंडलायुक्त, जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। यह परंपरा भविष्य में भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकीकरण को नई ऊंचाई देगी।