सरकारी स्कूलों के मर्जर व बंदी के खिलाफ ‘साझा संस्कृति मंच’ का विरोध

मुख्यमंत्री को सौंपा गया ज्ञापन, शिक्षा बचाओ अभियान को मिली नई धार

वाराणसी। प्रदेश में सरकारी विद्यालयों को मर्ज करने और बंद करने की नीति के खिलाफ जन संगठनों का विरोध तेज हो गया है। इसी क्रम में ‘साझा संस्कृति मंच – जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)’ ने गुरुवार को वाराणसी में मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपकर गहरी आपत्ति जताई। यह ज्ञापन बेसिक शिक्षा अधिकारी वाराणसी के माध्यम से प्रेषित किया गया।

 

ज्ञापन में केंद्र सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया गया कि पिछले दस वर्षों में देशभर में 89,441 विद्यालय बंद किए जा चुके हैं, जिनमें 25,000 से अधिक स्कूल अकेले उत्तर प्रदेश के हैं। अब राज्य सरकार द्वारा 5,000 परिषदीय विद्यालयों को मर्ज करने की योजना लाई जा रही है, जिससे लगभग 27,000 स्कूलों पर असर पड़ने की संभावना है।

 

नियोजन के दुष्परिणाम: 1.35 लाख सहायक शिक्षकों की तैनाती पर असर पड़ेगा।

27,000 प्रधानाध्यापक प्रभावित होंगे।

शिक्षामित्र, रसोइया, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आदि की आजीविका संकट में पड़ेगी।

बच्चों को दूर के स्कूलों में जाना पड़ेगा, जिससे ड्रॉपआउट और बालश्रम बढ़ सकता है।

मिड-डे मील की योजना में कटौती का असर बच्चों के पोषण पर पड़ेगा।

मुख्य माँगें: परिषदीय विद्यालयों की बंदी और पेयरिंग तत्काल रोकी जाए।

शिक्षा पर GDP का 6% खर्च सुनिश्चित हो।

निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें, वर्दी, छात्रवृत्ति समय से दी जाएं।

मिड-डे मील को पोषणयुक्त और पारदर्शी बनाया जाए।

शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की सेवा स्थायी की जाए।

शिक्षा में विज्ञानसम्मत, समावेशी और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जाए।

सभी स्कूलों की जवाबदेही और सामाजिक ऑडिट की व्यवस्था लागू हो।

ज्ञापन में इस बात पर गंभीर चिंता जताई गई कि विद्यालयों का मर्जर और बंदी शिक्षा के निजीकरण और केंद्रीकरण की दिशा में उठाया गया कदम है, जो गरीब, दलित, अल्पसंख्यक, महिलाएं और ग्रामीण समुदायों के शिक्षा अधिकार को प्रभावित करेगा।

 

साझा संस्कृति मंच का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नाम पर सरकार संसाधन और शिक्षकों की संख्या घटाकर विद्यालयों को प्रशासनिक दबाव में ला रही है। मंच ने चेताया कि यदि सरकार ने निर्णय पर पुनर्विचार नहीं किया, तो राज्यव्यापी विरोध आंदोलन शुरू किया जाएगा।

 

📌 इन संगठनों ने दिया समर्थन:

ज्ञापन सौंपने की प्रक्रिया में राष्ट्र सेविका मंच, आदिवासी शिक्षा चेतना मंच, रसोइया संघ, शिक्षामित्र संघर्ष मोर्चा और कई स्थानीय नागरिक संगठन एवं अभिभावक समूह शामिल रहे।

 

📌 आंदोलन की अगली रूपरेखा:

अगस्त से राष्ट्रव्यापी शिक्षा अधिकार यात्रा की संभावना।

जनहित याचिका (PIL) दाखिल करने की तैयारी।

हस्ताक्षर अभियान और जन संवाद की श्रृंखला शुरू होगी।

‘साझा संस्कृति मंच’ ने स्पष्ट किया कि यह संघर्ष केवल विद्यालयों की संख्या का नहीं, बल्कि जनशिक्षा व्यवस्था की गरिमा और बच्चों के भविष्य के अधिकारों की लड़ाई है। अब निगाहें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की संवेदनशीलता और तत्परता पर टिकी हैं।

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