मुनि आगमन सुना जब राजा, मिलन गयउलै विप्र समाजा
चौबेपुर (चिरईगांँव) जाल्हूपुर के टूड़ी नगर की प्राचीन रामलीला गुरुवार को महर्षि विश्वामित्र के अयोध्या आगमन से प्रारम्भ हुई। राजा दशरथ ब्राह्मणों को साथ लेकर महर्षि की अगवानी करते हैं तथा उन्हें सिंहासन पर विराजमान कराकर राम ,लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न को आशीर्वाद दिलवाते हैं। महर्षि विश्वामित्र यज्ञ में राक्षसों के उत्पात की जानकारी देते हुए इससे मुक्ति हेतु राम लक्ष्मण को साथ लेकर जाने का आग्रह करते हैं। मुनि की इच्छा जानकर राजा दशरथ ब्याकुल हो जाते हैं। लेकिन गुरु वशिष्ठ के समझाने पर राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ जाने की अनुमति देते हैं।
बन में प्रवेश करते ही राक्षसी ताड़का हुंकार भरते हुए प्रभु श्री राम की ओर दौड़ पड़ती है। घनघोर युद्ध के बाद श्रीराम के बाण से वह मारी जाती है। विश्वामित्र ने श्रीराम व लक्ष्मण को भूख प्यास से विचलित नहीं होने के साथ बल प्राप्त की मन्त्र विद्या प्रदान करते हैं। उसके बाद श्रीराम ऋषियों से निर्भय होकर यज्ञ करने को कहते है। ताड़का पुत्र मारीच युद्ध के लिए आता है भगवान श्रीराम उसे बाणों से मारते हैं वह समुद्र पार लंका में जा गिरता है। इसके बाद सेना सहित सुबाहु का बध करते हैं। देवता गण प्रसन्न होकर जयकारे लगाते हैं।
इसके बाद महर्षि विश्वामित्र राम लक्ष्मण को राजा जनक द्वारा आयोजित सीता स्वयंवर की जानकारी देते हैं। रास्ते में गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बनी उनकी पत्नी की भी जानकारी देते हैं इसपर श्रीराम शिला का चरणों से स्पर्श करते हैं अहिल्या प्रकट होकर तर जाती है। महर्षि विश्वामित्र संग राम लक्ष्मण के आगमन की जानकारी सुन राजा जनक उनकी अगवानी करते हैं। विश्वामित्र सहित श्री राम व लक्ष्मण की आरती के साथ रामलीला को विराम दिया गया।