
वाराणसी जिलाधिकारी एस0 राजलिंगम की अध्यक्षता में लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों और बेघर हो रहे पीड़ितों के बीच मुआवजे को लेकर पिछले शुक्रवार को हुई मैराथन बैठक में नही निकला कोई सहूलियत का रास्ता वही पीड़ितों के साथ संघर्ष में कन्धा से कन्धा मिलाकर साथ चलने का दावा करने वाले क्षेत्र के विधायक सौरभ श्रीवास्तव की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी दिखाई दे रही है।
एक तरफ मुआवजा अथवा पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना ही लोक निर्माण विभाग का सड़क चौड़ीकरण की जिद पर अड़ा हुआ होना, वहीं दूसरी ओर लगभग चार सौ आशियानों के टूटने की वजह से हजारों लोगों के बेघर होने की बात से पूरा क्षेत्र सकते में है। अबतक न तो शासन से कोई सन्देश आया और न ही जिला प्रशासन ने पीड़ितों के लिए कोई सहूलियत का रास्ता निकाला। तब थक हार कर एक पीड़ित के जिला न्यायालय सहित चालिस पीड़ितों के उच्च न्यायालय की शरण में जानें और उच्च न्यायालय द्वारा जिले के जिलाधिकारी को लोक निर्माण विभाग और पीड़ित याचिका कर्ताओं के बीच मध्यस्थता कर कोई सहूलियत का रास्ता निकालने का फरमान जारी किया गया।
क्योंकि उच्च न्यायालय भी चाहता है कि बेघर हो रहे पीड़ितों के साथ किसी भी कीमत पर अन्याय न हो और जिला प्रशासन पीड़ितों के नुकसान की भरपाई अपने स्तर पर करे।बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की हो रही है। जहां सड़क चौड़ीकरण को लेकर लोक निर्माण विभाग और बेघर हो रहे पीड़ितों के बीच की चल रही नूराकुश्ती सड़क से शुरू होकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दरबार में पत्र के माध्यम से पहुंचाया गया लेकिन शासन या प्रशासन द्वारा मुआवजा अथवा पुनर्वास की व्यवस्था कराए जाने को लेकर कोई संकेत न मिलता देख, बेघर हो रहे एक पीड़ित के जिला न्यायालय सहित चालिस पीड़ितों ने उच्च न्यायालय में मुआवजा या पुनर्वास के सम्बन्ध में गुहार लगाई।
उच्च न्यायालय ने लोक निर्माण विभाग द्वारा बिना नोटिस जारी किए, बिना मुआवजा राशि दिए अथवा पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना ही ध्वस्तीकरण की कार्यवाही करने से उत्पन्न हुए विवाद को ख़त्म करने के लिए वाराणसी के जिलाधिकारी एस0 राजलिंगम को निर्देशित किया। तत्पश्चात बीते शुक्रवार को वाराणसी के आयुक्त सभागार में जिलाधिकारी एस0 राजलिंगम की अध्यक्षता में लोक निर्माण विभाग और बिना मुआवजा बेघर हो रहे पीड़ितों के बीच मैराथन बैठक चली। जिसमे लोक निर्माण विभाग की ओर से अधिशासी अभियन्ता, सहायक अभियन्ता सहित राजस्व विभाग की तरफ से उप जिलाधिकारी सदर, नायब तहसीलदार और राजस्व निरीक्षक उपस्थित रहे।
बैठक के दौरान बेघर हो रहे पीड़ितों का नेतृत्व करते हुए रामनगर व्यापार मण्डल के अध्यक्ष राकेश जायसवाल ने कहा कि हम रामनगर के लोग सड़क चौड़ीकरण परियोजना का हर्ष के साथ सम्मान कर रहे हैं, क्योंकि सड़क चौड़ीकरण के पश्चात राष्ट्रीय विकास में रामनगर का भी अपना एक अहम योगदान होगा। लेकिन बिना नोटिस जारी किए लोक निर्माण विभाग लोगों के घरों को जिस तरह, जिस रूप में तोड़ने के उद्देश्य से रामनगर पहुंचा था वह लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों की तुगलकी हरकत ही कही जा सकती है।
लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के अमानवीय नेतृत्व के ही कारण कई बार तो पुलिस और पीड़ित भी एक दूसरे के सामने हुए, लेकिन पुलिस अधिकारियों के सुझबुझ के कारण कोई घटना नही घटी। अध्यक्ष राकेश जायसवाल ने जोर देकर यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में बेघर हो रहे पीड़ितों को मुआवजा न देने से कई सौ परिवार बेघर होने के साथ अपना कोई अन्य आशियाना नही बना पाएंगे।
क्योंकि सड़क के किनारे सदियों से बसे लोगों ने अपने परिवार के रोजी रोटी के लिए अपने घरों में ही दुकानें भी लगा रखा था। लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के तुगलकी हरकत के कारण बिना मुआवजा दिए सड़क चौड़ीकरण करने से लोग तो बेघर होंगे ही इनकी रोजी रोटी भी छीन जाएगी। वही लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने अपने गजट नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए कहा कि मध्य सड़क से दोनो ओर नौ नौ मीटर लोक निर्माण विभाग की जमीनें है, जिन जमीनों पर इन लोगो ने अतिक्रमण कर रखा है।
ये लोग अपना अतिक्रमण स्वयं हटा लें। फिलहाल सड़क चौड़ीकरण को लेकर उन जमीनों के एवज में लोक निर्माण विभाग के अधिकारी मुआवजा देने से बचने के लिए कई बार गोल मटोल की बातें भी रखते हुए देखे गए। वहीं एक पीड़ित याचिका कर्ता ने बताया कि माननीय उच्च न्यायालय ने हम पीड़ितों को अतिक्रमणकारी नही बल्कि टेन्योर होल्डर कहा है। मैराथन बैठक में जिलाधिकारी एस0 राजलिंगम के सामने एक याचिका कर्ता ने जब राजघराने द्वारा इन लोगों को बसाए जाने की बात कही गई तो एस0 राजलिंगम ने कहा कि राजघराने की पत्रावलियों का भी अवलोकन कराया जाएगा।
बताते चलें कि उच्च न्यायालय के निर्देशन के अनुपालन में जिलाधिकारी एस0 राजलिंगम की अध्यक्षता में उच्च न्यायालय की शरण में गए पीड़ितों और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के बीच हुई मैराथन बैठक का फिलहाल कोई हल नहीं निकला और अभी तक कोई उम्मीद की किरण भी नहीं दिख रहा है। देखने वाली बात यह होगी कि पीड़ितों के साथ संघर्ष में कन्धा से कन्धा मिलाकर साथ चलने का दावा करने वाले क्षेत्र के विधायक की बात को शासन कितनी तरजीह देगा क्योंकि इस सम्पूर्ण प्रकरण में विधायक सौरभ श्रीवास्तव की भी प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। बताते चलें कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए सत्ता से जुड़े प्रतिनिधि भी नही चाहते की कोई ऐसी बात हो जाए जिसका खामियाजा भुगतना पड़े, जबकि वही उच्च न्यायालय सहित जिला न्यायालय की शरण में पहुंच चुके पीड़ितों की सत्ता के जनप्रतिनिधियों के प्रति जबर्दस्त नाराजगी भी क्षेत्र में चर्चा का सबब बनी हुई है।